हर राह अपनी है अगर मंजिल का पता नहीं,
वो ज़िन्दगी बस सपना है जिसे हकीक़त की हवा नहीं;
कई पल छाने कई लम्हे टटोले होंगे,
वो बीत गया क्या , जिसे याद की सजा नहीं;
लफ्ज़ तोले है कई बार ज़माने ने तेरे,
वो कहानी ही क्या, जिसे झूठ की परवाह नहीं;
एक ही घर से निकले सब राही , हमकदम नहीं,
मिलेंगे फिर,कोई ख्याल इंसान से जुदा तो नहीं; -तुषार