उस घर से निकल भाग कर इस दरवाज़े तक आ गया हूँ...
भीगा है दरवाज़ा , शायद बारिश हो रही है ...
यहाँ नयी जगह कोई खिड़की नहीं दिखती
है तो बस आखें , जो बंद हो आज भी उस घर तक पहुच जाती है
खुली तो कुछ टपक गया ...एक माजी शायद ...
या ...फिर पता नहीं , शायद बारिश हो रही है...
बड़ी सावली सी छत , सीडियों पे पर आ बैठी है
और एक में खड़ा हूँ , उस बदल के साथ ..वही ..
कुछ साफ़ दिखता नहीं...चश्मे पे ओस है ..
या...फिर पता नहीं...शायद बारिश हो रही है ...
वो कुर्सी के आगे रखी है चाय, पकोडो कि खुशबू के साथ ..
रसोई में पर कोई नहीं है , बस हवा कुछ सिली है
या ...फिर पता नहीं...शायद बारिश हो रही है ...
-कबीर
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जितने भी तय करते गए बढते गए यह फासले ...
मिलो से दिन छोड़ आये , सालो से रात लेके चले - गुलज़ार
My Shadow by Tushar Sharma- 'Kabir' is licensed under a Creative Commons Attribution 3.0 Unported License.
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