कोई उफान कोई तरंग नहीं
सब कुछ शांत सा हो गया है
कोई लगाव न ही कोई बिछोह
सब रात सा हो गया है
न न रात नहीं , वहां तो रोशनी है अँधेरे की
तो शायद होगा ये पतझड़ का सावन
वो भी नहीं
वोह भी तो मौसम है
है बस एक खालीपन , हाँ एक खालीपन
पर ..., पता नहीं
पर क्या महसूस होता है ?
कुछ भी नहीं , सूनापन भी नहीं
क्या सो गया है , यहाँ
जहाँ हकीकत सपनो से मिलती नहीं
और सपने हकीकत से उगते नहीं ...
यह बस शान्ति है ...
अपने को पाने की
और पा के बस जैसे
सब
समर्पित हो गया है ....
-तुषार