Friday, June 20, 2008

एक रिश्ता था जो ...

एक रिश्ता था जो
पीछे छूटा है वो
कहाँ गई मंजीलें
खो गए रास्ते

एक सपना था जो
बुना मिलके था वो
छूटी बाहों की गली
मिली न कोई कलि

एक कहानी थी जो
चाहत से बुनी थी वो
लफ्ज़ का चेहरा नहीं
वादें खो गए यहीं

एक साथ था जो
हाथ थामता था वो
बाहें पास बुलाती है
अकेले अब घबराटी है

एक खुशी थी जो
पल पल हसाती थी वो
जागती रात है अब
सूने दिन है अब
-तुषार

3 comments:

  1. आपकी इस कविता के लिए मेरे कुछ शब्द....

    एक कविता है जो
    अनकहे से दर्द समेटे है वो
    दिल की गहराइयों से जो महसूस होते हैं
    कहने जाओ तो शब्द अपने अर्थ खोते हैं

    -deepak tiwari

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  2. Why is so difficult to let go ?
    How come we dont feel happy when we remember those tender warm moments ?
    Why does the Sun not shine on my darkest days ?

    ~ NilS

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  3. There is lot of pain in you poetries which I am unable to find in your twinkling eyes.
    nainon kee maat suniyo..
    naina thag lenge....

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