वो खुशी तेरी थी, तेरी हुई, चली गई,
वो अशक मेरे थे, बहे फिर ठहर गए;
अब क्यों खुशी को बुलाये जो हुई पराई?
क्यों गम को सताए जो है बस हमसाये ?
-तुषार
Friday, June 12, 2009
...खुशी...गम...
Wednesday, June 10, 2009
...गम...दिल ...
तू गया, तेरा गम भी एक दिन यूँ चला जाएगा,
कोई कहाँ रुका है जो यह मौसम ठहर जाएगा
वो बरसा तो दिल भी कहीं गीला भीगा हो जाएगा
वो सूख गया तो दिल भी बस पत्थर हो जाएगा .
-तुषार
Wednesday, June 03, 2009
ये रात अकेली लगती है ...
ये रात अकेली लगती है ,
वो चाँद तन्हा जगता है ;
न कोई अपना मिलता है ,
न कोई पराया दीखता है ;
वो दिन मैं चेहरे लड़ते है ,
और रात में डर सा लगता है ;
वो कहीं बिछडा जाता है ,
यह हाथ खाली रहता है ;
वो ऊचे मकान में जीता है ,
कहीं घर खाली बैठा है ;
यह आसमान को छुता है ,
बस तारो से बातें करता है ;
वो सर्द ईमारत में हँसता है ,
मौसम से अछुता रहता है ;
वोह दिनभर भागता रहता है ,
और बस इंतज़ार में जीता है ;
वो रोज़ कुछ पाता है ,
और ख़ुद खोता लगता है ;
कहाँ अब ख़ुद से मिलता है ,
कहाँ ख़ुद को जानता है ;
कुछ अधूरे सपनो को रोता है ,
और ज़िन्दगी से शिकायत करता है ;
ये रात अकेली लगती है ,
वो चाँद तन्हा जगता है ;
-तुषार
वो चाँद तन्हा जगता है ;
न कोई अपना मिलता है ,
न कोई पराया दीखता है ;
वो दिन मैं चेहरे लड़ते है ,
और रात में डर सा लगता है ;
वो कहीं बिछडा जाता है ,
यह हाथ खाली रहता है ;
वो ऊचे मकान में जीता है ,
कहीं घर खाली बैठा है ;
यह आसमान को छुता है ,
बस तारो से बातें करता है ;
वो सर्द ईमारत में हँसता है ,
मौसम से अछुता रहता है ;
वोह दिनभर भागता रहता है ,
और बस इंतज़ार में जीता है ;
वो रोज़ कुछ पाता है ,
और ख़ुद खोता लगता है ;
कहाँ अब ख़ुद से मिलता है ,
कहाँ ख़ुद को जानता है ;
कुछ अधूरे सपनो को रोता है ,
और ज़िन्दगी से शिकायत करता है ;
ये रात अकेली लगती है ,
वो चाँद तन्हा जगता है ;
-तुषार
Monday, June 01, 2009
अन्त ...शुरुवात...
हर अन्त किसी शुरुवात से ही उपजा है,
वही शुरुवात जो उस अन्त के लिए जन्मी थी ...
वही शुरुवात जो उस अन्त के लिए जन्मी थी ...
Every end is a conclusion of a new start,
The start which commenced for that very end…
-Tushar
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