Thursday, July 23, 2009

...देता हूँ

एक धुन्धलाये अक्स सा मुस्कुरा देता हूँ,
सब के लिए ख़ुद को भूला देता हूँ;

ज़र्रे-ज़र्रे बूटे में ढूँढा किए दिल,
तुझे अपने नाम की वजह देता हूँ;

वो भागते भूल गए चाँद से मिलना,
ए मुसाफिर तुझे तारो के रात देता हूँ;

मिल गए कभी जुदा हुए ए 'कबीर'
सपनो की कुछ ऐसे सच्चाई देता हूँ;

गिला नहीं, ढूँढा नहीं तुझे ए खुदा,
मालिक तुझे माँ का नाम देता हूँ;

राहगीर चलते गए, तलाश में कोई,
तुझे तेरा सा रहगुज़र देता हूँ;
-तुषार

3 comments:

  1. Anonymous1:45 PM

    I am speechless and chocked.

    Gila nahi dhoonda nahi tujhe e khuda,
    Maalik tujhe ma ka naam deta hun.

    Can’t comment on this.I can’t.This is too good for my throat and eyes.
    Man you are wasting yourself.You have it you.Just use. Amazed amazed and amazed.
    -Vinay

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  2. वो भागते भूल गए चाँद से मिलना,
    ए मुसाफिर तुझे तारो के रात देता हूँ;

    Amazing thaught and amazing framing..

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  3. Anonymous2:12 PM

    Fizz read this to me .... made me speechless.

    Too good. You ve got great talent. Do something about it Sir. Just Do.

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