Sunday, June 06, 2010

तन्हाई

क्या सोचा था ज़िन्दगी इतनी अजनबी होगी
चाँद मिलेगा फिर भी रात तनहा होगी

इंतज़ार तेरा ज़माने से बगावत होगा
तुझसे वफ़ा , खुदा से बेवफाई होगी

ज़िन्दगी मेरी मेरे हाथों में ही तो है
लकीरों में दास्ताँ हर पल की छुपी होगी

क़र्ज़ उठाये है मुस्कराहट के बेहिसाब
कभी तो नज़र कोई कहीं हमकदम होगी

मुख़्तसर से रिश्ते और फलसफे -ए -ज़िन्दगी ,
कारवां से मिले फिर भी तन्हाई संग होगी
-तुषार

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