दर्द इतना है की कुछ लिख न सका ,
दोस्त कहाँ था तुझे कभी , आज कुछ कर/कह न सका ;
मुसाफिर हूँ , शहर या बस्ती नहीं ,
तू साथ चल न सका , में पास रुक न सका ;
हर पते से पुछा है पता ,
किसी दरवाज़े पे खुद से मिल न सका ;
पीपल वो मेरा रूठ गया , सूख गया ,
ज़िन्दगी से बड़ा कोई रिश्ता जी न सका ;
हारा हो , माना है , पर जुर्म बस इतना है ,
तकदीर का अपना बस कभी हो न सका ;
-तुषार
hhhmmmm, sahi kar rha hai, purane din yad aa gaye
ReplyDeleteI don't care what the poem is all about.
ReplyDeleteI found something to chew for a long time to come.
पीपल वो मेरा रूठ गया , सूख गया ,
ज़िन्दगी से बड़ा कोई रिश्ता जी न सका ;
Cant get enough of it. :)
tushar this is your mindblowing poem ..i really like it.
ReplyDeletebindiya