Sunday, June 06, 2010

...सका

दर्द इतना है की कुछ लिख न सका ,
दोस्त कहाँ था तुझे कभी , आज कुछ कर/कह न सका ;

मुसाफिर हूँ , शहर या बस्ती नहीं ,
तू साथ चल न सका , में पास रुक न सका ;

हर पते से पुछा है पता ,
किसी दरवाज़े पे खुद से मिल न सका ;

पीपल वो मेरा रूठ गया , सूख गया ,
ज़िन्दगी से बड़ा कोई रिश्ता जी न सका ;

हारा हो , माना है , पर जुर्म बस इतना है ,
तकदीर का अपना बस कभी हो न सका ;
-तुषार

3 comments:

  1. Hirdesh7:05 PM

    hhhmmmm, sahi kar rha hai, purane din yad aa gaye

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  2. I don't care what the poem is all about.

    I found something to chew for a long time to come.

    पीपल वो मेरा रूठ गया , सूख गया ,
    ज़िन्दगी से बड़ा कोई रिश्ता जी न सका ;

    Cant get enough of it. :)

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  3. bindiya2:37 PM

    tushar this is your mindblowing poem ..i really like it.
    bindiya

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