क्या खलिश , पता नहीं क्या हैरानी फिरती है;
सपनो में हूँ रहता , ज़िन्दगी हकीक़त सी लगती है ,
खवाइश आसमान तक फैली है , धुंद ज़रा सी ठहरी है;
कहाँ बादल घुमड़े है , और कहाँ बूँद सी भिखरी है,
रास्ते चुप चाप राह पर चलते है , मंजिल पीछे बैठी है;
सुकून है कुछ दर्द का, कहीं बर्फ आग से पिघली है ,
कुछ किरने पानी पर सोती है , गुलाबी सी रंगीनी है,
चाँद अभी पका नहीं, चांदनी अभी बोनी है
-तुषार
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDeletebahut hi-fi hai bhai...can't digest it..but certainly, now, Mumbai is town for u and world is waiting for next Gulzar...Tushar (oh! that rhymes...I am not saying a poem...it happened coincidently :-)
ReplyDeleteBahut achchi hai, but logo ki shikayat hai ki unhe samajh nahi aayi, eska khyal rakho, n some mistakes in hindi
ReplyDeleteIt's hilarious to see people dictating things here. Ahh! Tell them its your blog not a burger shop.
ReplyDeleteAnyways. back to the post.
I just saw the dawn around the corner carrying my dreams.
brilliant and simple.
Loved this line.
सपनो में हूँ रहता, ज़िन्दगी हकीक़त सी लगती है.
Write more and frequent. :)
-Vinay