कई रातों से लिखा नहीं कुछ,
दिन कई जैसे जोड़ रहा हूँ ,
रिश्ते जाने बस छूट गए है ,
या मैं अनजाने पीछे रह गया हूँ .
वो क्या था क्या है पिघलता सा ,
सच और झूठ मैं ढूँढ रहा हूँ ,
मैं और मैं कि तस्वीर को ले कर ,
अपना सा वो आइना दूंध रहा हूँ;
-तुषार
My Shadow by Tushar Sharma- 'Kabir' is licensed under a Creative Commons Attribution 3.0 Unported License.
Based on a work at www.myshadewithshadow.blogspot.com.
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