Tuesday, December 16, 2008

...मज़ा क्या है

सिली ज़िन्दगी उधरने भिखेरने में मज़ा क्या है ?
अपने ज़ख्म कुरेदने नोचने में मज़ा क्या है ?
दर्द अपने ही है, कुछ सूखे कुछ हरे भी
फिर भी देखो मुस्कान पालने में मज़ा क्या है ?
-तुषार

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