Tuesday, September 22, 2009

पलछिन

ज़िन्दगी आइना है रूह का मेरी ,
सवारते रहते है लिबास कई ;
अनजान कोई हर सुबह मिलता है !

वो सडको पे बरसता है ,
रात में थके साए कई ;
चाँद तो दिन मैं सोता है !

कहीं कोई रुक गया है झरना ,
मोती फिर भी मिलते है वही ;
क्या कोई हार टूटा है !

किताब की धूल झाड़ दी हमने ,
नए फूल गुलदस्ते में सही;
क्या यादो को कबाडी लेता है !

रात में तनहा नहीं, दिन में है ,
कहो मिजाज़ यह क्या कहता है ;
रोशन तारे है , पर टिमटिमाते ही है !
-तुषार

5 comments:

  1. Anonymous8:34 AM

    Beautiful! My favourite is # 2.
    -Jatin

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  2. Anonymous8:35 AM

    Your work is getting too good and too refined with time….. J
    -Nimish

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  3. Anonymous8:36 AM

    amazing dada amazing. hell.hell hell.

    kitaab ki dhool jhaad di humne
    naye phool guldaste main sahi

    kya yadoo ko kabadi leta hai ?
    -Vinay

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  4. Anonymous8:36 AM

    this is really a very nice try, will rate as one of the best i have seen from you
    -Roopesh

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  5. mast likhi hian janab..
    aise hee likhte raho..and u will reach to maximum

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