Saturday, September 26, 2009

अगर...मगर...

जिंदगी ‘अगर’ में जी लेते तो सही,
जहाँ में ‘मगर ’ होगे बहूत ;
वो साथ तो होगे हर वक्त,
तनहा पल फिर भी होगे बहूत;

कहीं कोहरे को बदल समझ बैठे,
बहना चाहते थे साथ हम भी ‘मगर’;
छट गई धुंध और खड़े रह गए दरख्त,
सालो से जैसे किसी का इंतज़ार हो बहूत ;

जिंदगी खड़ी थी उस मोड़ पर वहां,
रास्ता सीधा पहूचता था ‘मगर’,
एक काफिर ने राह यूँ मोड़ दी है कि ,
मंजिल नज़र से दूर हुई है बहूत;

अपने होने का सबब पूछ बैठा आंसू,
कह न पाए हम उस लगी को ‘मगर’,
बहा है अपने ही लहू से वो भी,
दर्द भी है, और खुशी भी बहूत;
-तुषार

5 comments:

  1. Anonymous7:24 PM

    "Chat gayi dhoondh aur khade rah gaye darakht Saalo se jaise kisi ka intezaar hoon bahoot"

    How can someone think this.

    your thoughts are superb.
    -vinay

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  2. Anonymous7:24 PM

    amazing man amazing... this is worth millions in bollywood..
    -Vinay

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  3. Anonymous7:24 PM

    Second is my best para..
    bahut hee barhiya likhi hian boss..
    -Chakresh

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  4. Anonymous7:26 PM

    अपने होने का सबब पूछ बैठा आंसू,
    ....nothing to ask...nothing to say after this ...this is world, I can't think beyond this...it has all ...it covers every thing ...
    -Kabir ka dost (this was said in words to me )

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  5. Anonymous5:49 PM

    To whome are you blaming by these lines:

    जिंदगी खड़ी थी उस मोड़ पर वहां,
    रास्ता सीधा पहूचता था ‘मगर’,
    एक काफिर ने राह यूँ मोड़ दी है कि ,
    मंजिल नज़र से दूर हुई है बहूत;

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