Tuesday, September 22, 2009

रात...

कुछ अज़ब फैलाव है ,
कुछ अज़ब सा ठहराव,
कुछ रुकी खामोशी,
कुछ बस बहता अँधेरा ;

कुछ ऐसा है रात का आगोश ,
जैसे बस कोई ख्याल हों फैला ,
हर कुछ जैसे बस खो सा गया है ,
बस एक रंग में सर्द राख सा बना ;

इसी ठहराव में चलता है कोई,
इसी खामोशी में होती है कुछ बातें ,
इसी अंधेरे से मिलता है वो उजाला ,
जहाँ मिलता हूँ मैं
मुझसे
मेरे सपनो में...

-तुषार

2 comments:

  1. Anonymous8:32 AM

    Amazing … I like it…

    Aur is baar sab samajh mein bi aya … J
    -Shailly

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  2. creative one..
    Second para is the my fav one..

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