Tuesday, January 20, 2009

...जीता है

यहाँ फिर लौटते अजब पशेमान है,
अपने यार कहाँ, बेगाने नाम सुनता है;

कुछ पत्ते भीगे कुछ मौसम पीला है,
वही जानी गलियाँ , बदला मकान लगता है;

'कबीर' शायद अभी बीत नहीं पाया है,
हर कोई बस दुनिया-ऐ-दस्तूर जीता है;

दिल मैं बहते सालो के लम्हे है,
आखों मैं अलग बस मंज़र दीखता है;

-तुषार

1 comment:

  1. hmm
    bahut khoob..
    welcome 2 India without ND (ND got married)...
    Nice thaugh...btw

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