क्या खलिश , पता नहीं क्या हैरानी फिरती है;
सपनो में हूँ रहता , ज़िन्दगी हकीक़त सी लगती है ,
खवाइश आसमान तक फैली है , धुंद ज़रा सी ठहरी है;
कहाँ बादल घुमड़े है , और कहाँ बूँद सी भिखरी है,
रास्ते चुप चाप राह पर चलते है , मंजिल पीछे बैठी है;
सुकून है कुछ दर्द का, कहीं बर्फ आग से पिघली है ,
कुछ किरने पानी पर सोती है , गुलाबी सी रंगीनी है,
चाँद अभी पका नहीं, चांदनी अभी बोनी है
-तुषार
Wednesday, July 21, 2010
Sunday, June 06, 2010
...सका
दर्द इतना है की कुछ लिख न सका ,
दोस्त कहाँ था तुझे कभी , आज कुछ कर/कह न सका ;
मुसाफिर हूँ , शहर या बस्ती नहीं ,
तू साथ चल न सका , में पास रुक न सका ;
हर पते से पुछा है पता ,
किसी दरवाज़े पे खुद से मिल न सका ;
पीपल वो मेरा रूठ गया , सूख गया ,
ज़िन्दगी से बड़ा कोई रिश्ता जी न सका ;
हारा हो , माना है , पर जुर्म बस इतना है ,
तकदीर का अपना बस कभी हो न सका ;
-तुषार
दोस्त कहाँ था तुझे कभी , आज कुछ कर/कह न सका ;
मुसाफिर हूँ , शहर या बस्ती नहीं ,
तू साथ चल न सका , में पास रुक न सका ;
हर पते से पुछा है पता ,
किसी दरवाज़े पे खुद से मिल न सका ;
पीपल वो मेरा रूठ गया , सूख गया ,
ज़िन्दगी से बड़ा कोई रिश्ता जी न सका ;
हारा हो , माना है , पर जुर्म बस इतना है ,
तकदीर का अपना बस कभी हो न सका ;
-तुषार
...तनहा...
किससे अपना दिल कहे हर कोई हैरान फिरता है
भीड़ है कितनी दुनिया में , पर हर पल तनहा मिलता है
-तुषार
भीड़ है कितनी दुनिया में , पर हर पल तनहा मिलता है
-तुषार
तन्हाई
क्या सोचा था ज़िन्दगी इतनी अजनबी होगी
चाँद मिलेगा फिर भी रात तनहा होगी
इंतज़ार तेरा ज़माने से बगावत होगा
तुझसे वफ़ा , खुदा से बेवफाई होगी
ज़िन्दगी मेरी मेरे हाथों में ही तो है
लकीरों में दास्ताँ हर पल की छुपी होगी
क़र्ज़ उठाये है मुस्कराहट के बेहिसाब
कभी तो नज़र कोई कहीं हमकदम होगी
मुख़्तसर से रिश्ते और फलसफे -ए -ज़िन्दगी ,
कारवां से मिले फिर भी तन्हाई संग होगी
-तुषार
चाँद मिलेगा फिर भी रात तनहा होगी
इंतज़ार तेरा ज़माने से बगावत होगा
तुझसे वफ़ा , खुदा से बेवफाई होगी
ज़िन्दगी मेरी मेरे हाथों में ही तो है
लकीरों में दास्ताँ हर पल की छुपी होगी
क़र्ज़ उठाये है मुस्कराहट के बेहिसाब
कभी तो नज़र कोई कहीं हमकदम होगी
मुख़्तसर से रिश्ते और फलसफे -ए -ज़िन्दगी ,
कारवां से मिले फिर भी तन्हाई संग होगी
-तुषार
...होंगे
जाम लिए हाथ मैं कहो न ए दिल,
लफ्ज़ वो तेरे भी अनसुने होंगे ;
दिलो का खेल है और दस्तूर एक ,
तेरी ज़मीन पर चंद अशक ही होंगे ;
न हो बेपर्दा और न ही किताब ,
कुछ दर्द बहे तो बस लुत्फ़ होंगे ;
दे इजाज़त मोहबत करने की मुझे ,
मेरे गुनाह कई फिर तुझे बक्शने होंगे ;
तू भी परख मुझे , और मैं भी , मालिक ,
कभी तो तेरे लिए हम भी इंसान होंगे ;
/*This is a stolen but felt thought */
दे गए आराम कुछ पल बैठ कर ,
और कितने दोस्ती के क़र्ज़ होंगे ;
-तुषार
लफ्ज़ वो तेरे भी अनसुने होंगे ;
दिलो का खेल है और दस्तूर एक ,
तेरी ज़मीन पर चंद अशक ही होंगे ;
न हो बेपर्दा और न ही किताब ,
कुछ दर्द बहे तो बस लुत्फ़ होंगे ;
दे इजाज़त मोहबत करने की मुझे ,
मेरे गुनाह कई फिर तुझे बक्शने होंगे ;
तू भी परख मुझे , और मैं भी , मालिक ,
कभी तो तेरे लिए हम भी इंसान होंगे ;
/*This is a stolen but felt thought */
दे गए आराम कुछ पल बैठ कर ,
और कितने दोस्ती के क़र्ज़ होंगे ;
-तुषार
Wednesday, January 20, 2010
...शाम...
Sunday, January 17, 2010
शिकवा ...
खवाब टूटने की खबर अजनबियों ने दी मुझे
ऐ ज़िन्दगी तूने इतना भी अपना न समझा मुझे
गेंरो ने सुना नहीं, कहानी अपनों से कह न सके
अश्क और लब बस अब जुड़वाँ लगते है मुझे
दर्द से उनके दर्द हुआ कम मेरा, आदम हूँ
क्यों हंसी , 'कबीर', सुकून दे न सकी मुझे
कई रिश्ते बस खामोश छोड़ दिए यूही
और कई जवाब कभी मिले न मुझे
******************************************
शिकवे और सवाल तो ज़िन्दगी को दिए मैंने
ज़िन्दगी ने तो बस 'ज़िन्दगी' दी है मुझे
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-तुषार
Tuesday, January 05, 2010
समर्पण ...
कोई उफान कोई तरंग नहीं
सब कुछ शांत सा हो गया है
कोई लगाव न ही कोई बिछोह
सब रात सा हो गया है
न न रात नहीं , वहां तो रोशनी है अँधेरे की
तो शायद होगा ये पतझड़ का सावन
वो भी नहीं
वोह भी तो मौसम है
है बस एक खालीपन , हाँ एक खालीपन
पर ..., पता नहीं
पर क्या महसूस होता है ?
कुछ भी नहीं , सूनापन भी नहीं
क्या सो गया है , यहाँ
जहाँ हकीकत सपनो से मिलती नहीं
और सपने हकीकत से उगते नहीं ...
यह बस शान्ति है ...
अपने को पाने की
और पा के बस जैसे
सब
समर्पित हो गया है ....
-तुषार
सब कुछ शांत सा हो गया है
कोई लगाव न ही कोई बिछोह
सब रात सा हो गया है
न न रात नहीं , वहां तो रोशनी है अँधेरे की
तो शायद होगा ये पतझड़ का सावन
वो भी नहीं
वोह भी तो मौसम है
है बस एक खालीपन , हाँ एक खालीपन
पर ..., पता नहीं
पर क्या महसूस होता है ?
कुछ भी नहीं , सूनापन भी नहीं
क्या सो गया है , यहाँ
जहाँ हकीकत सपनो से मिलती नहीं
और सपने हकीकत से उगते नहीं ...
यह बस शान्ति है ...
अपने को पाने की
और पा के बस जैसे
सब
समर्पित हो गया है ....
-तुषार
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