Monday, December 12, 2011
ज़िन्दगी को कई बार आखँ बंद कर देखा है हमने...
कभी खुद के लिए कभी बस यूही कुछ कहा है हमने,
तलाश रहे थे सहारा बेसहारो की भरी नगरी में,
कई बार खुद को खुद से हारते देखा है हमने ;
ज़िन्दगी को कई बार आखँ बंद कर देखा है हमने...
चाह थी एक मामूली आराम की बस आम सी,
कभी थके खुद, पर उनको आराम देते देखा है हमने;
ज़िन्दगी को कई बार आखँ बंद कर देखा है हमने...
आज उनको देख जलन होती नहीं, खुशी भी नहीं,
कई सिलसिलो को गुजरते जाते देखा है हमने;
ज़िन्दगी को कई बार आखँ बंद कर देखा है हमने...
-तुषार
Monday, November 21, 2011
सपना...
हर राह अपनी है अगर मंजिल का पता नहीं,
वो ज़िन्दगी बस सपना है जिसे हकीक़त की हवा नहीं;
कई पल छाने कई लम्हे टटोले होंगे,
वो बीत गया क्या , जिसे याद की सजा नहीं;
लफ्ज़ तोले है कई बार ज़माने ने तेरे,
वो कहानी ही क्या, जिसे झूठ की परवाह नहीं;
एक ही घर से निकले सब राही , हमकदम नहीं,
मिलेंगे फिर,कोई ख्याल इंसान से जुदा तो नहीं;
-तुषार
Friday, October 21, 2011
...आँचल...
क्या माँ के आँचल को छू सकता हूँ...
कुछ थक सा गया हूँ , क्या माँ कि गोद में सो सकता हूँ...
कहते है बड़ा हूँ गया है अब 'कबीर' ...
पर क्या कुछ पल के लिए माँ का चंदा बन सकता हूँ ?
-तुषार
Wednesday, October 19, 2011
...घर...
कहीं थोड़ी सीलन , कहीं चोबे उतारी तस्वीरो के
कुछ दरवाज़े खुले , कमरों के, कुछ चेहरे खाली आइनों के
कुछ बाँध लिया पेटी में, कुछ पीछे रह सिक्के दादू के...
-तुषार
Tuesday, October 18, 2011
Friday, July 29, 2011
???
वोह न रुकता है वो न थमता है, पर कभी वो थका भी दिखता है ...
जो मिला वो कभी चाह नहीं, जो चाहा वो कभी मिला नहीं,
मेरी ज़िन्दगी की किताब को जाने कौन लिखता है ...
मेरी दिल के आरजोयो में अब कहीं कोई नाम नहीं ,
जो थे वो कहीं मिट गए, नए अब मैं बस लिखता नहीं...
-तुषार
Wednesday, July 27, 2011
आज फिर ...था.....
आज फिर भीग गया
कागज़ सा एक खवाब था ...
आज फिर कह गया
आज फिर सह गया
पत्थर सा एक आदम था...
आज फिर हंस गया
आज फिर बह गया
आईने सा एक चेहरा था...
आज फिर रुक गया
आज फिर ठहर गया
सोच सा एक दर्द था ...
आज फिर मिल गया
आज फिर खिल गया
ओस सा रिश्ता था ...
-तुषार
Tuesday, June 07, 2011
कहानी और सच...
पर दादा-दादी ने बोला झूठ था मुझे,
न होती है परी, न होता है हातिम ...
कुछ मगर सचाई उन कहानी में भी थी,
शैतान से डर तब भी लगता था मुझे,
चाँद उनमे भी बस मुस्कुराता था हसीन...
ज़िन्दगी है ये और कहानी रही वोह थी,
वहां सुकून राजकुमारी, 'कबीर' यहाँ मिला मुझे,
सचाई के दिन, सपने की बातें फैली यही कहीं ...
-तुषार
Sunday, May 29, 2011
..दर्द..
सवाल अब कोई पूछे नहीं जाते तुझसे ,
ज़िन्दगी इस शर्त पर ही तो मिले है हमे;
कुछ था ही नहीं मेरा पास मेरे , जो तू ले गया ,
किस्मत शायद तेरी , खुदा ने बक्श दी थी हमे;
मुस्कराहट की रौशनी है लबो पे सबकी ,
दर्द रातों को ही तो बस जगाता है हमे;
कुछ रिश्ते बड़े महगे हुए ‘कबीर ’ तेरे ,
रोये वोह तो उनकी कीमत पता चली हमे ;
On valentine day rose killing :
गुलाब बिछड़े कई अपनों से , महकाए कई चेहरे ,
कुछ ऐसे ही खुद के लिए , ज़माने ने अपनाया है हमे
-तुषार
मेरे तीन प्यारो के लिए ...
पत्थर हुआ नहीं ,थोड़ी नमी शायद बाकी है ;
नन्ही हंसी आज भी कभी युही धुंधली हो जाती है ;
-तुषार
...अन्त
आज तनहा कुछ ऐसे है की तन्हाई भी न मिले;
जिस शहर की रौनक से थे हम खेला कभी किये,
वोह बस्ती आज अनजान बेगानों सी है मिले ...
-तुषार
जज्बात ...
1. ”ऐसा नहीं की अपनी कोई कहानी नहीं
लफ्ज़ अपने बस बक्श दिए है हमने ”-
2. "ज़िन्दगी तुने बहूत कुछ दीया है हमे ,
हंसी हमारी शायद हमसे ही खो गयी है "
3. "तन्हाई की भी खुदा अजब रौनक है,
किसी की भी कहानी का हिस्सा नहीं हम,
सब चल रहे है सोचकर बस ये 'कबीर'
चाँद मिला तो सितारे खोने का क्या है गम"
-तुषार