झूठ के दायरों में तुझे सच की आँच देता हूँ !
ज़र्रे -ज़र्रे बूटे-बूटे में ढूँढा किये दिल,
तुझे अपने नाम की वजह
देता हूँ !
वो भागते भूल गए चाँद से मिलना ,
ए मुसाफिर तुझे तारों की रात
देता हूँ !
मिल गए कभी जुदा हुए ए 'कबीर',
सपनो की बस कुछ ऐसे ताबीर
देता हूँ !
गिला नहीं , ढूंढा नहीं तुझे ए खुदा ,
मालिक तुझे माँ का नाम
देता हूँ !
राहगीर चलते गए। तलाश में कई ,
तुझे तेरा सा रहगुज़र
देता हूँ !
-कबीर (तुषार)
My Shadow by Tushar Sharma- 'Kabir' is licensed under a Creative Commons Attribution 3.0 Unported License.Based on a work at www.myshadewithshadow.blogspot.com.
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