आज सब हाहाकार है !
सोचता हूँ सुनते सुनते,
क्या करने कहने वाला मेरी तरह शर्मशार है ?
एक मौत पर न जाने
कितने घर बनते है ?
एक कपड़ा जो उतरा था,
उससे कितने लिबास सिलते है !
एक पेड़ लगाया छोटा सा,
देखो कितनी तस्वीर छपती है!
वो जला दिए जंगल सारे,
यहाँ इमारते बिकती है !
वो पीड़ित नहीं नमूना है,
उसे बेचना बनता है !
जो मारा गया कारखानों से ,
इश्तिहार से छुपाना पड़ता है !
सोचता हूँ सुनते सुनते,
क्या करने कहने वाला भी शर्मशार है ?
-कबीर(तुषार)
My Shadow by Tushar Sharma- 'Kabir' is licensed under a Creative Commons Attribution 3.0 Unported License.Based on a work at www.myshadewithshadow.blogspot.com.
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