श्याम बिना सूनी है सारी बतियाँ || १ ||
जमुना किनारे देखो बैठी अकेली ,
आया न देखो, राह तकती रही सखियाँ
|| २ ||
काला काजल काले-काले बादल,
बरसा मेघ बाजी न बाँसुरियाँ
|| ३ ||
कौन गली जाऊँ कौन पहर बैठो,
न कोई गाँव कान्हा , न कोई डगरियाँ
|| ४ ||
छोड़ गया मोहे , छूटा नहीं मोहसे,
राधा रोइ , मीरा बन गयी जोगनियाँ
|| ५ ||
कैसा है दिन और कैसी है रतियाँ,
श्याम बिना सूनी है सारी बतियाँ
-कबीर (तुषार)
Based on a work at www.myshadewithshadow.blogspot.com.
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