झूठ के कम्बल में यूँ ठिठुरते रहोगे ,
कह दोगे गर सच फिर भी जलते रहोगे !
एक दिन न कोई मान न कोई बेमान रहेगा ,
तुम कहानी पर अपनी ही हैरान रहोगे !
याद कर लो मौत को एक पल के लिए ,
जो जी रहे क्या वैसे ही जीते रहोगे ?
आसमाँ ले जायेगा उन सितारों के पास ,
कुछ लिख जाओगे या गुमनाम रहोगे !
मैं आज भी उनसे मिला कल की तरह,
तुम अब मुझे मेहमानो में गिनते रहोगे !
-कबीर (तुषार)
My Shadow by Tushar Sharma- 'Kabir' is licensed under a Creative Commons Attribution 3.0 Unported License.
Based on a work at www.myshadewithshadow.blogspot.com.
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