मैं था तो नहीं चाँद,
फिर भी घटता बढ़ता रहा हूँ,
कभी उसके दुःख पर खुश,
कभी अपने एहसान भूलता रहा हूँ !
मैं था तो नहीं वक़्त,
फिर भी देखो चलता रहा हूँ,
कभी काफिले रात में बांधता,
कभी अकेला सूरज सा पिघलता रहा हूँ !
मैं था तो नहीं आवाज़,
फिर भी कहता सुनता रहा हूँ,
कभी सन्नाटे की फुसफुसाहट,
कभी शोर में चीखता रहा हूँ !
-कबीर (तुषार)
My Shadow by Tushar Sharma- 'Kabir' is licensed under a Creative Commons Attribution 3.0 Unported License.
Based on a work at www.myshadewithshadow.blogspot.com.
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