देखो मुझे बड़ा होना अच्छा नहीं लगता
चलता हूँ पीछे-२ , हाथ नहीं पकड़ता,
गुल्लक में टॉफ़ी के पैसे नहीं भरता !
२ बजे आज भी स्कूल की घंटी हूँ सुनता ,
साइकिल पर अब मैं घर नहीं पहुँचता !
दादा-दादी , नाना-नानी की कहानी नहीं सुनता,
अपने सपनो को अब बस यूँ ही नहीं कहता !
काश 'कबीर' बचपन सबका बचपन ही रहता,
शायद किसी को
बड़ा होना अच्छा नहीं लगता !
-कबीर(तुषार)
My Shadow by Tushar Sharma- 'Kabir' is licensed under a Creative Commons Attribution 3.0 Unported License.Based on a work at www.myshadewithshadow.blogspot.com.
No comments:
Post a Comment