लबों को दाँत से दबाना हुस्न-ए-अदा होगा,
उसी अदा से कभी आँसू थाम कर देखो !
मिल कर डूबने का लुत्फ़ दरिया होगा,
फिर भी दूर किनारो पर साथ चल के देखो !
नज़र पर अपनी उससे गुमान बहुत होगा,
क्यों संग गुलाब होते है काँटे, सोच कर देखो !
इंतज़ार
ऐसा कोई नहीं जो खत्म न होगा,
ज़मीनी या आसमानी, ये अलग बात है देखो !
-कबीर (तुषार)
Based on a work at www.myshadewithshadow.blogspot.com.
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