बहुत उलझन है सीने में,
गलियो में कुछ चीखता रहता है,
कुछ थोड़ा अलग आज करते है ,
चलो चाँद को सोने देते है!
बहुत थकान है पैरो में,
बातों में ख़ामोशी बैठी है,
कुछ थोड़ा आज झुक जाते है
चलो रात को गुजरने देते है!
बहुत लिखा है चेहरों पे,
लबो पे
कहानी
उलझी है,
कुछ हंसी के बादल तकते है
चलो बारिश को बरसने देते है
-कबीर (तुषार)
Based on a work at www.myshadewithshadow.blogspot.com.
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