तारो में कही एक चाँद रूठा सा था !
हँसता फिरता था सारे जहाँ भर में ,
घर का हर कमरा फिर भी अनजान सा था !
हर मोड़ कैसे बदल देता है रुख ऐसे ,
कब्र पर उम्र का अलग मुयाना सा था !
भूल कर याद खाली हुआ भी क्या ,
सोचता रहा कैसा अजीब बोझ सा था !
भूल कर याद खाली हुआ भी क्या ,
सोचता रहा कैसा अजीब बोझ सा था !
-कबीर (तुषार)
My Shadow by Tushar Sharma- 'Kabir' is licensed under a Creative Commons Attribution 3.0 Unported License.
Based on a work at www.myshadewithshadow.blogspot.com.
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