Wednesday, January 20, 2010

...शाम...


दिन गया छोड़ मुझे यही ,
रात ने अभी अपनाया नहीं,
तनहा पर रहने दिया नहीं ,
हमसफ़र, शाम मुस्काई यही ...
-तुषार


Sunday, January 17, 2010

शिकवा ...


खवाब टूटने की खबर अजनबियों ने दी मुझे
ऐ ज़िन्दगी तूने इतना भी अपना न समझा मुझे

गेंरो ने सुना नहीं, कहानी अपनों से कह न सके
अश्क और लब बस अब जुड़वाँ लगते है मुझे

दर्द से उनके दर्द हुआ कम मेरा, आदम हूँ
क्यों हंसी , 'कबीर', सुकून दे न सकी मुझे

कई रिश्ते बस खामोश छोड़ दिए यूही
और कई जवाब कभी मिले न मुझे
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शिकवे और सवाल तो ज़िन्दगी को दिए मैंने
ज़िन्दगी ने तो बस 'ज़िन्दगी' दी है मुझे
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-तुषार

Tuesday, January 05, 2010

समर्पण ...


कोई उफान कोई तरंग नहीं
सब कुछ शांत सा हो गया है
कोई लगाव न ही कोई बिछोह
सब रात सा हो गया है
न न रात नहीं , वहां तो रोशनी है अँधेरे की
तो शायद होगा ये पतझड़ का सावन
वो भी नहीं
वोह भी तो मौसम है
है बस एक खालीपन , हाँ एक खालीपन
पर ..., पता नहीं
पर क्या महसूस होता है ?
कुछ भी नहीं , सूनापन भी नहीं
क्या सो गया है , यहाँ
जहाँ हकीकत सपनो से मिलती नहीं
और सपने हकीकत से उगते नहीं ...
यह बस शान्ति है ...
अपने को पाने की
और पा के बस जैसे
सब
समर्पित हो गया है ....
-तुषार