Sunday, June 06, 2010

...सका

दर्द इतना है की कुछ लिख न सका ,
दोस्त कहाँ था तुझे कभी , आज कुछ कर/कह न सका ;

मुसाफिर हूँ , शहर या बस्ती नहीं ,
तू साथ चल न सका , में पास रुक न सका ;

हर पते से पुछा है पता ,
किसी दरवाज़े पे खुद से मिल न सका ;

पीपल वो मेरा रूठ गया , सूख गया ,
ज़िन्दगी से बड़ा कोई रिश्ता जी न सका ;

हारा हो , माना है , पर जुर्म बस इतना है ,
तकदीर का अपना बस कभी हो न सका ;
-तुषार

...तनहा...

किससे अपना दिल कहे हर कोई हैरान फिरता है
भीड़ है कितनी दुनिया में , पर हर पल तनहा मिलता है
-तुषार

तन्हाई

क्या सोचा था ज़िन्दगी इतनी अजनबी होगी
चाँद मिलेगा फिर भी रात तनहा होगी

इंतज़ार तेरा ज़माने से बगावत होगा
तुझसे वफ़ा , खुदा से बेवफाई होगी

ज़िन्दगी मेरी मेरे हाथों में ही तो है
लकीरों में दास्ताँ हर पल की छुपी होगी

क़र्ज़ उठाये है मुस्कराहट के बेहिसाब
कभी तो नज़र कोई कहीं हमकदम होगी

मुख़्तसर से रिश्ते और फलसफे -ए -ज़िन्दगी ,
कारवां से मिले फिर भी तन्हाई संग होगी
-तुषार

...होंगे

जाम लिए हाथ मैं कहो न ए दिल,
लफ्ज़ वो तेरे भी अनसुने होंगे ;

दिलो का खेल है और दस्तूर एक ,
तेरी ज़मीन पर चंद अशक ही होंगे ;

न हो बेपर्दा और न ही किताब ,
कुछ दर्द बहे तो बस लुत्फ़ होंगे ;

दे इजाज़त मोहबत करने की मुझे ,
मेरे गुनाह कई फिर तुझे बक्शने होंगे ;

तू भी परख मुझे , और मैं भी , मालिक ,
कभी तो तेरे लिए हम भी इंसान होंगे ;
/*This is a stolen but felt thought */

दे गए आराम कुछ पल बैठ कर ,
और कितने दोस्ती के क़र्ज़ होंगे ;
-तुषार