Sunday, May 29, 2011

..दर्द..

सवाल अब कोई पूछे नहीं जाते तुझसे ,
ज़िन्दगी इस शर्त पर ही तो मिले है हमे;


कुछ था ही नहीं मेरा पास मेरे , जो तू ले गया ,
किस्मत शायद तेरी , खुदा ने बक्श दी थी हमे;


मुस्कराहट की रौशनी है लबो पे सबकी ,
दर्द रातों को ही तो बस जगाता है हमे;


कुछ रिश्ते बड़े महगे हुए ‘कबीर ’ तेरे ,
रोये वोह तो उनकी कीमत पता चली हमे ;


On valentine day rose killing :


गुलाब बिछड़े कई अपनों से , महकाए कई चेहरे ,
कुछ ऐसे ही खुद के लिए , ज़माने ने अपनाया है हमे


-तुषार

मेरे तीन प्यारो के लिए ...

पत्थर हुआ नहीं ,थोड़ी नमी शायद बाकी है ;
नन्ही हंसी आज भी कभी युही धुंधली हो जाती है ;


-तुषार



...अन्त

हर रहनुमा को छोड़ दीया खुद की बुलंदी के लिए,


आज तनहा कुछ ऐसे है की तन्हाई भी न मिले;


जिस शहर की रौनक से थे हम खेला कभी किये,


वोह बस्ती आज अनजान बेगानों सी है मिले ...


-तुषार

जज्बात ...


1. ”ऐसा नहीं की अपनी कोई कहानी नहीं
लफ्ज़ अपने बस बक्श दिए है हमने ”-

2. "ज़िन्दगी तुने बहूत कुछ दीया है हमे ,
हंसी हमारी शायद हमसे ही खो गयी है "

3. "तन्हाई की भी खुदा अजब रौनक है,
किसी की भी कहानी का हिस्सा नहीं हम,
सब चल रहे है सोचकर बस ये 'कबीर'
चाँद मिला तो सितारे खोने का क्या है गम"


-तुषार