Monday, June 18, 2012

तलाश ...





कई रातों से लिखा नहीं कुछ,
दिन कई जैसे जोड़ रहा हूँ ,
रिश्ते जाने बस छूट गए है,
या मैं अनजाने पीछे रह गया हूँ .

वो क्या था क्या है पिघलता सा,
सच और झूठ मैं ढूँढ रहा हूँ ,
मैं और मैं कि तस्वीर को ले कर,
अपना सा वो आइना ढूँढ रहा हूँ;

भाग रहा था वो भी , शाम वही मिल जाता था,
बस उस बत्ति का मिलना था, कार से दिख जाता था,
कहाँ जाता था कहाँ से आता, पुछा नहीं कभी,
उलझा हूँ इतना , जाने किस तलाश को दूंध रहा हूँ
-तुषार