Thursday, July 29, 2021

...सा था !

बेकरारी में जाने कैसा करार सा था ,
तारो में कही एक चाँद रूठा सा था !

हँसता फिरता था सारे जहाँ भर में ,
घर का हर कमरा फिर भी अनजान सा था !

हर मोड़ कैसे बदल देता है रुख ऐसे ,
कब्र पर उम्र का अलग मुयाना सा था !

भूल कर याद खाली हुआ भी क्या ,
सोचता रहा कैसा अजीब बोझ सा था !
-कबीर (तुषार)

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