Friday, June 18, 2021

देता हूँ !

एक धुंधुलाये अक्स सा मुस्कुरा देता हूँ ,
झूठ के दायरों में तुझे सच की आँच  देता हूँ !

ज़र्रे -ज़र्रे बूटे-बूटे  में ढूँढा किये दिल,
तुझे अपने नाम की वजह  देता हूँ ! 

वो भागते भूल गए चाँद से मिलना ,
ए मुसाफिर तुझे तारों की रात  देता हूँ ! 

मिल गए कभी जुदा हुए ए 'कबीर',
सपनो की बस कुछ ऐसे ताबीर  देता हूँ ! 

गिला नहीं , ढूंढा नहीं तुझे ए खुदा ,
मालिक तुझे माँ का नाम  देता हूँ ! 

राहगीर चलते गए।  तलाश में कई ,
तुझे तेरा सा रहगुज़र  देता हूँ ! 

-कबीर (तुषार)     
Creative Commons LicenseMy Shadow by Tushar Sharma- 'Kabir' is licensed under a Creative Commons Attribution 3.0 Unported License.
Based on a work at www.myshadewithshadow.blogspot.com.

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